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Last Updated:
2018/05/27
Summary of question
इन्सान की सफ़लता और उसका कमाल किस चीज़ में है .
question
इन्सान की सफ़लता और उसका कमाल किस चीज़ में है .
Concise answer
इस सवाल के व्यापक और तफ़सीली जवाब के लिए पहले दो बुनयादी सवालों का जवाब देना ज़रूरी है,.
१. सआदत के मानी क्या हैं और क्या सआदत, कमाल से अलग है?
२. इन्सान किस तरह का प्राणी है...?
१. सआदत के मानी क्या हैं और क्या सआदत, कमाल से अलग है?
२. इन्सान किस तरह का प्राणी है...?
ऐसा मालूम पड़ता है कि कमाल, सआदत से अलग नहीं है. इन्सान जितना कमाल हासिल करता जाएगा उतना ही सआदत तक पहुँचता जायेगा. इन्सान एक ऐसा प्राणी है जो रूह यानि आत्मा और जिस्म से मिलकर बना है और मनुष्य का अस्तित्व रूह से ही है. आत्मा और जिस्म को सआदत की प्राप्ति उसी समय होती है जब वे दोनों अपने वुजूद के कमाल और उसकी उत्तमता तक पहुंच जाते हैं. रूह की सफ़लता और सआदत अल्लाह से नजदीक होने और उस तक पहुँचने में है. यानि इस सूरत में मनुष्य अपनी उत्तमता और पूर्णता के अंत तक पहुँच जाता है. अगरचे इस्लामी रवायतों में जिस्म की सलामती और माद्दी (भौतिक)मामलों को भी इंसानियत की सफ़लता में हिसाब किया जाता है.
इस के बावजूद कुछ लोग सआदत को कमाल से अलग जानते हैं या नृविज्ञान में विभिन्न राय रखते हैं दूसरी जगहों पर उनकी आलोचना और समीक्षा की गई है. जैसा कि कुछ लोग मनुष्य को एक भौतिक और माद्दी प्राणी मानते हैं और कहते हैं कि उसकी सआदत भौतिक और माद्दी सुखों में है. दर्शनशास्त्र के कुछ लोग बुद्धि को को इन्सान का अस्तित्व मानते हैं .कुछ रहस्यवादी (इरफ़ान वाले) लोग इश्क़ को मानवता और इंसानियत की कसौटी और मानक जानते हैं और..., “क्यों हकीक़त को नहीं जानते हैं इस लिए अफसाना बना लिया.” शेर.
Detailed Answer
इस सवाल का सही और विस्तृत जवाब उसी सूरत में मिल सकता है जब सआदत के माने को सही तौर पर बयान किया जाए और इन्सान और उसकी पैदाइश के उद्देश्य को पहचाना जाए. “कांट” जैसे कुछ लोग सआदत को कमाल से अलग मानते हैं. कांट इस बारे में कहता है इस पूरी दुनिया में सिर्फ एक ही कमाल और अच्छाई है और वह नेक इरादा और नियत है. और नेक इरादे का मतलब भी रूह और अन्तरात्मा की आज्ञा को मानना है. चाहे ख़ुशी मिले या न मिले. लेकिन सआदत ऐसा सुख और ख़ुशी है जिसमें कोई दर्द और रंज नहीं होता है .और नैतिकता का संबंध उत्तमता से है न कि सआदत से.[1] लेकिन इस्लामी विध्वान,दर्शन व नैतिक शास्त्री कहते हैं : इन्सान जितनी उत्तमता और कमाल प्राप्त करता जाता है उतना ही सआदत तक पहुँचता जाता है.[2] यह लोग कांट की तरह सआदत को कमाल से अलग नहीं जानते हैं. अगरचे यह ज़रुर कहते हैं कि अगर सआदत का मतलब भौतिक और माद्दी सुख हो तो कमाल इस तरह की सआदत से अलग होगा.[3] दूसरी तरफ़ से इन्सान के बारे में विभिन्न दर्शनों के विभिन्न दृष्टीकोण की वजह से सआदत के अलग अलग माना सामने आते हैं.
ऐसे दर्शन जो इन्सान को सिर्फ भौतिक और माद्दी प्राणी मानते हैं उनकी द्रष्टिकोण से सआदत भी भौतिक है. और इन में से कुछ अधिक से अधिक माद्दी और भौतिक सुखों की प्राप्ति को इन्सान की पूर्णता और उत्तमता मानते हैं. वह दर्शन जो बुद्धि और अक्ल को इंसानियत की कसौटी मानते हैं उनकी निगाह में दिव्य ज्ञान और शिक्षा द्वारा बुद्धि की तरक्क़ी को सआदत माना गया हैं. व रहस्यवादी और आरिफ लोग कहते हैं कि इन्सान जितना इश्क़ प्राप्त करता जाए उसे सआदत की उतनी ही ज़्यादा प्राप्ति होगी. “नीचे” जैसे लोग बल और ताक़त को सआदत बुनियाद मानते और बलवान और ताक़तवर इन्सान को सआदत वाला मानते हैं. लेकिन इस्लामी दृष्टिकोण से (बुद्धि और इश्क़ के साथ) इन्सान की परिभाषा इस तरह की गई है:
इनसान एक ऐसा प्राणी है जिस में विभिन्न प्रकार की प्रतिभाएँ पाई जाती हैं.वह आत्मा और जिस्म से मिलकर बना है सिर्फ भौतिक और माद्दी प्राणी नहीं है.[4] उसका वास्तविक जीवन इस दुनिया में नहीं बल्कि दुसरे जहान में है वह अनंत काल के लिए पैदा किया गया है. उसकी सोच, कर्म ,नैतिकता उसका हमेशा बाकी रहना वाला बदन तय्यार करते हैं आदि. इस सोच के साथ, इन्सान की प्रतिभायें उसकी सआदत के साथ निखरती हैं और उस को अपनी रूह और जिस्म की ज़रूतों का मुनसिब जवाब मिलजाता है.
अल्लामा तबातबाई इस बारे में कहते हैं: हर चीज़ की सआदत उसका उसके अस्तित्व की उत्तमता तक पहुंचना है, और इन्सान जो रूह और जिस्म से मिलकर बना है उसकी सआदत रूहानी और जिस्मानी सारी अच्छाइयों तक पहुंचना है. और उससे फायदा उठाना है . [5]
रूह और आत्मा जो अल्लाह की तरफ से है [6]"و نفخت فیه من روحى" तो उसकी सआदत भी अल्लाह से नज़दीक और पहुंचने में ही होगी. यानि उसी जगह वापस जाना जहाँ से आया था. या यूँ कहा जाए की इन्सान की रूह का अस्तित्व अल्लाह या परमात्मा से है "انّاللَّه" और वह इस प्राकृतिक दुनिया में रहते हुए वुजूद के स्तर को बढ़ाता है और उसकी सआदत इस बात में है कि वह इश्क़ और वैकल्पिक मौत[7] के साथ इस प्राक्रतिक दुनिया से कूच कर जाए. और उसी जगह पहुँच जाए जो उसके लिए है जिसे "و انا الیه راجعون" कहते हैं. ऐसे इन्सान का बदन अगरचे इस दुनिया में होता है लेकिन उसकी आत्मा किसी और जगह से जुड़ी हुई होती है.[8] लेकिन इसका मतलब भौतिक मामलों की तरफ़ से ग़फ़लत नहीं है. क्यों कि भौतिक और माद्दी चीजों व नेमतों से लाभ उठाना भी इन्सान की सआदत में गिना जाता है. और यह ताकीद की गई है कि इन्सान को चाहिए कि स्वास्थ्य के सिद्धांतों की रियायत करते हुए अपने शरीर को मजबूत करे.क्यों की सही व सालिम जिस्म सही व सालिम रूह की शर्त है.[9] बल्कि इसका मतलब यह है कि आत्मा और रूह के द्वारा मनुष्य की पहचान होती है और उसकी पैदाइश का उद्देश मालूम होता है और वह उद्देश परमात्मा या अल्लाह के समीप पहुंचना है.
"یا ایتها النفس المطمئنة* ارجعى الى ربک راضیة مرضیة* فادخلى فى عبادى* و ادخلى جنتى"[10]
“ ऐ; मुतमईन नफस (आत्मा) अपने रब की तरफ़ लौट आ इस तरह कि तू उससे राज़ी है वह तुझसे राज़ी है। अतः मेरे बन्दों में सम्मिलित हो जा और मेरी जन्नत में प्रवेश कर- “
"یا ایها الانسان انک کادح الى ربک کدحا فملاقیه"[11]
ऐ मनुष्य! तू मशक़्क़त करता हुआ अपने रब ही की ओर खिंचा चला जा रहा है और अन्ततः उससे मिलने वाला है
"فى مقعد صدق عند ملیک مقتدر"[12]
प्रतिष्ठित स्थान पर, प्रभुत्वशाली सम्राट के निकट
"و ما خلقت الجنّ و الانس الاّ لیعبدون"[13]
मैंने तो जिन्नों और मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी बन्दगी करे
इबादत परमात्मा या अल्लाह से करीब होने का साधन है.
"و استعینوا بالصبر و الصلاة..."،[14]
धैर्य और नमाज़ से मदद लो,
इसी लिए कहा जाता है कि हर वह चीज़ जो इन्सान को अल्लाह से करीब करने में मदद करे वह उसकी सआदत को बढाती है. इससे पता चलता है कि सिर्फ नमाज़ ही अल्लाह से करीब करने का साधन नही है बल्कि अल्लाह के बन्दों की सेवा भी इबादत है और अल्लाह से करीब करने का साधन है.
अल्लामा तबताबाई कहते हैं :[15] यह नेमतें उसी सूरत में नेमत हिसाब होंगी जब वो इन्सान सृष्टि और पैदाइश के उद्देश के अनुरूप हो; क्यों कि इन को इस लिए बनाया गया है ताकि असली सआदत की राह को तय करने में यह अल्लाह की तरफ़ से मदद बन सकें. और वह सआदत, अल्लाह की बन्दगी और उसके ससमक्ष समर्पित होकर उससे नज़दीक होजाना है. कि वो कहता है : "و ما خلقت الجن و الانس...".
[1] . मुर्तजा मुतःरी , फलसफ ए अखलाक़ , प ७०,७१
[2] . अखलाक़ कि किताबों में सआदत को अखलाक़ का रुक्न बताया गया है, किताब “मेराजुसादाह ” प १८ व २३ देखें .
[3] . मुर्तजा मुतःरी , फलसफ ए अखलाक़ , प ७२
[4]. हीज्र:२९ व मोमेनून : १२ से १४
[5] .मोहम्मद हुसैन तबातबाई, तफसीर अलमीज़ान ,ज ११ ,प, २८
[6] . हीज्र २९ . तो जब मैं उसे पूरा बना चुकूँ और उसमें अपनी रूह फूँक दूँ.
[7] . वैकल्पिक मौत यानी नफ़स से जिहाद और उस पर काबू पाना है. जैसा कि हज़रत अली अ.स ने फ़रमाया :
"قد احیى عقله و امات نفسه" नह्जुल्बलागा खुतबा २२० ,
"قد احیى عقله و امات نفسه" नह्जुल्बलागा खुतबा २२० ,
[8] . नह्जुल्बलागा ख़त१४७ ,مِنْ کَلَامٍ لَهُ (ع) لِکُمَیْلِ بْنِ زِیَادٍ النَّخَعِی:"...صَحِبُوا الدُّنْیَا بِأَبْدَانٍ أَرْوَاحُهَا مُعَلَّقَةٌ بِالْمَحَلِّ الْأَعْلَى"
[9] .उसूले काफी,ज२, प५५०.
[10] .फ़ज्र :२७
[11] .इन्शेकाक ,६
[12] . क़मर ,५५
[13] .ज़ारियात ,५६
[14] .बक़रह ,४५
[15] . मोहम्मद हुसैन तबातबाई, तफसीर अलमीज़ान, ज५ ,स २८१
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